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केंद्र सरकार का कहना है कि खाद्य सुरक्षा कानून में यह अनिवार्य है कि बूचड़ खाने में लाये गए मवेशियों को मारने से पहले उन्हें बेहोश किया जाए| “इससे जानवरों की पीड़ा और दर्द को कम किया जा सकता है”|
वाकई क्या हाल हो चुका है मानवता का! हम दुनिया के सबसे मानवतावादी देश होने का दम भरते हैं, और जानवरों की हत्या करने के लिए मेन्यू बनाते हैं? बजाय उनका संरक्षण करने के , हम ये चर्चा करते हैं कि मरते समय उनके दर्द का नियंत्रण कैसे किया जाए? आप जिसे मार ही रहे हो जो ख़त्म ही हो रहा है फिर उसके दर्द की चिंता का ढकोसला क्यों? क्या मारना इतना ही जरुरी है? कैसे लोग हैं जो अपने स्वाद के लिए किसी की हत्या कर देते हैं! फिर इनमे से कई लोग पाये जाते हैं मानव अधिकारों, नारी सुरक्षा, बाल शोषण आदि पर चिंता करते हुए| सच में पैशाचिक पृवत्ति के लोग ही इस श्रेणी में आ सकते हैं!
ये किसी पार्टी या धर्म से सम्बंधित विषय नहीं हैं! यह विषय है मानव के संवेदनशील होने का! यह मानव की अपनी सोच और शर्म से जुडी हुई बात है! हम मानव वध करने वाले को राक्षस तक कह देते हैं, मगर बेसहाय जीव जंतुओं को मार कर खा जाने वालों पर कोई प्रश्न नही उठाता | हमें ये बंद करना होगा, जैसे हमारे लिए सभी मानवों का जीवन अति आवश्यक है, वैसे ही इन बेजुबान जीवों के जीवन की जिम्मेदारी भी ईश्वर ने हम बुद्धिवान मनुष्यों को दी है| कहीं न कहीं अब ये जीव जंतु मानव जाति की नीतियों पर आश्रित हैं| हम अपने पर आश्रित प्राणियों को मार कर खा जाएँ इससे बड़ा दुष्कृत्य संभवतः कोई और न होगा! इसलिए यह हमारा नैतिक दायित्व है कि हम इन्हें संरक्षण प्रदान करें! आइये संकल्प लें न किसी की हत्या करेंगे और ना ही हत्या के जिम्मेदार बनेंगे ! आखिर हम मानव हैं!
-पुष्यमित्र उपाध्याय
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