pushyamitra
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फूल ताउम्र तो बहारों में नहीं रहते
हम भी अब अपने यारों में नहीं रहते
मुहब्बत है गर तो आज ही कह दो मुझसे
ये फैसले यूं उधारों में नहीं रहते
अब जानी है हमने दुनिया की हकीकत
अब हम आपके खुमारों में नहीं रहते
दिल तोड़ दो बेफिक्र कोई कुछ न कहेगा
ये छोटे से किस्से अखबारों में नहीं रहते
मेरा रकीब भी आज मेरी खिलाफत में है
लोग हमेशा तो किरदारों में नहीं रहते
बस वजूद की ही जंग है महफिलों में बाकी
वो तूफ़ान भी अब आशारों में नही रहते
-पुष्यमित्र उपाध्याय
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