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खत्म हो गयी दुनिया!

pushyamitra
pushyamitra
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कमरे के चार परदोँ के बीच,
पडा हूँ मैँ भी!
जीता हूँ या बेजाँ पता भी नहीँ..
कई रोज से जान का एहसास हुआ भी नहीँ..
शायद अब साँस नहीँ बाकी’
तुम्हारी ही तरह!
कल तुमने सही कहा था…
एक रोज दुनिया खत्म होगी!
और हो भी गयी,
कोई रोये
कोई चीखे
तडपे
लुटे
पिटे
मिटे
मिट जाये
चाहे तबाह हो जाये
कौन सुनता है
कौन देखता है
कौन आता है
बाकी हैँ सिर्फ पिशाच ही अब
बेखौफ सडकोँ पे घूमते
लाशोँ को छीलते
दिन ब दिन पनपते
सारी लाशेँ बेवास्ता
सारी लाशेँ बेबस
सारी लाशेँ तमाशाई
कहाँ रही दुनिया
खत्म हो तो गई
कहाँ है आवाज़ अब
सब हैँ लाशोँ के ढेर मेँ एक लाश
कल तुमने सच कहा था…
एक रोज खत्म होगी दुनिया!

-पुष्यमित्र

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